अनुरा कुमारा दिसानायके: श्रीलंका के नए राष्ट्रपति का कार्यकाल और चुनौतियाँ

अनुरा कुमारा दिसानायके: श्रीलंका के नए राष्ट्रपति का कार्यकाल और चुनौतियाँ

अनुरा कुमारा दिसानायके: श्रीलंका के नए राष्ट्रपति

श्रीलंका में एक नई राजनीतिक दिशा का संकेत देते हुए, अनुरा कुमारा दिसानायके ने देश के नये राष्ट्रपति के रूप में पदभार ग्रहण किया है। 55 वर्षीय मार्क्सवादी नेता ने 42.31% वोटों के साथ विजय हासिल की, जिसमें उन्होंने मौजूदा राष्ट्रपति रणिल विक्रमसिंघे और विपक्षी नेता सजित प्रेमदासा को हराया। यह चुनाव विक्रमसिंघे के नेतृत्व के खिलाफ एक जनमत संग्रह की तरह था, जिसमें श्रीलंका के बड़े आर्थिक संकट की पृष्ठभूमि में व्यापक जन समर्थन देखा गया।

जीवन परिचय एवं राजनीतिक यात्रा

अनुरा कुमारा दिसानायके का जन्म 24 नवंबर 1968 को गालेवेला में हुआ था, जो कि श्रीलंका के मध्य भाग में स्थित एक सांस्कृतिक और धार्मिक विविधता वाला शहर है। वह एक मध्यमवर्गीय परिवार से आते हैं और उन्होंने भौतिकी में स्नातक की उपाधि प्राप्त की है। उनकी राजनीतिक यात्रा का आरंभ 1980 के दशक के अंत में जनता विमुक्ति पेरामुना (JVP) से हुआ, जो कि एक मार्क्सवादी पार्टी थी। इस पार्टी ने सरकार के खिलाफ सशस्त्र विद्रोह किया था, जिसे व्यापक हिंसा और संघर्ष के रूप में देखा गया।

हालांकि, 2014 में दिए बीबीसी के एक साक्षात्कार में दिसानायके ने उन हिंसात्मक घटनाओं के लिए खेद व्यक्त किया था। 2000 में पहली बार संसद सदस्य चुने गए दिसानायके ने कृषि और सिंचाई मंत्री के रूप में भी कार्य किया। उन्होंने 2019 में भी राष्ट्रपति चुनाव लड़ा था, लेकिन उन्हें गोतबाया राजपक्षे से हार का सामना करना पड़ा।

चुनाव और समर्थन

इस चुनाव की विशेषता यह थी कि इसमें न केवल दिसानायके की व्यक्तिगत छवि महत्वपूर्ण थी, बल्कि राष्ट्रीय जनशक्ति (NPP) गठबंधन के मजबूत समर्थन को भी दर्शाया गया। NPP का नेतृत्व JVP कर रही है, जो भ्रष्टाचार के खिलाफ और कमजोर वर्गों के समर्थन में नीतियाँ बनाने के लिए जानी जाती है।

श्रीलंका के आर्थिक संकट और 2022 में देश के डिफ़ॉल्ट के बाद IMF से मिले बेलआउट पैकेज की पृष्ठभूमि में यह चुनाव हुआ। दिसानायके ने यह स्पष्ट कर दिया है कि वे IMF समझौते को पुन: वार्ता के साथ संशोधित करेंगे ताकि लोगों पर होने वाले कठोर कदमों को कम किया जा सके।

युवावर्ग ने दिसानायके का बड़े पैमाने पर समर्थन किया और उन्हें परम्परागत राजनीतिक अभिजात वर्ग से एक अलग और नया नेतृत्व माना। उनकी जीत को एक नया आशा किरण माना जा रहा है, जो देश की आर्थिक परिस्थितियों को संभालने और स्थिरता लाने के लिए महत्वपूर्ण साबित हो सकती है।

भविष्य की चुनौतियाँ और उम्मीदें

हालांकि दिसानायके की जीत को एक बड़ा जन समर्थन मिला है, लेकिन उनके सामने चुनौतियाँ भी कम नहीं हैं। सबसे पहले, वह देश की अर्थव्यवस्था को स्थिरता प्रदान करने के लिए कदम उठाएँगे। उच्च कर और जीवन यापन की लागत जैसी समस्याएँ अभी भी जनता को परेशान कर रही हैं। इसके अलावा, उन्हें व्यावसायिक और वित्तीय क्षेत्रों की चिंताओं को भी ध्यान में रखना होगा।

उनकी चुनावी घोषणापत्र में IMF बेलआउट समझौते के पुन: वार्तालाप और प्रांतीय परिषदों के चुनाव कराने की बातें शामिल थीं, जो कभी JVP की प्राथमिकताओं में नहीं थीं। अंतरराष्ट्रीय संबंधों, विशेषकर भारत और चीन के साथ, उनके शासन काल में कैसे विकसित होंगे, यह भी देखना होगा।

अनुरा कुमारा दिसानायके का विजय व्यक्तिगत नहीं बल्कि उन हजारों समर्थकों की सामूहिक मेहनत का परिणाम है जिन्होंने उनकी नीतियों का समर्थन किया। उनका प्रबल संकल्प आर्थिक संकट का समाधान और प्रणालीगत बदलाव लाने का है, जिससे देश एक नया मार्ग प्राप्त कर सके।

12 टिप्पणि

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    Payal Singh

    सितंबर 25, 2024 AT 14:26
    इतनी बड़ी उम्मीदें लेकर आए हैं, लेकिन याद रखो-इतिहास में बहुत सारे नए नेता आए, जिन्होंने बहुत कुछ कहा, लेकिन जब असली दबाव आया, तो सब चुप हो गए। अनुरा अगर असली बदलाव चाहते हैं, तो बस वादे नहीं, बल्कि कार्रवाई दिखानी होगी।
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    avinash jedia

    सितंबर 25, 2024 AT 21:24
    अरे भई, ये सब मार्क्सवादी नेता तो बस एक ही चीज़ कहते हैं-‘हम गरीबों के लिए हैं’। लेकिन जब वो सत्ता में आते हैं, तो उनके बजट में सिर्फ एक ही चीज़ बढ़ जाती है-पुलिस का बजट।
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    Shruti Singh

    सितंबर 26, 2024 AT 12:19
    ये जीत सिर्फ एक व्यक्ति की नहीं, ये लाखों उम्मीदों की जीत है! जब तक हम खुद को बदलने के लिए तैयार नहीं होंगे, तब तक कोई नेता कुछ नहीं बदल सकता। अनुरा, हम तुम्हारे साथ हैं-चाहे जितनी भी लड़ाई आए!
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    Kunal Sharma

    सितंबर 28, 2024 AT 10:22
    अगर हम इस चुनाव को एक नाटक के रूप में देखें, तो दिसानायके एक ऐसे नायक हैं जिन्होंने अपने अतीत के खूनी पन्नों को जलाकर एक नया धर्मशास्त्र लिखने का फैसला किया है-जिसमें आर्थिक न्याय के लिए बारूद के बजाय शिक्षा के बीज बोए जा रहे हैं। लेकिन यह नाटक क्या होगा अगर अंतिम दृश्य में उन्हें खुद की पार्टी के एक गुट द्वारा अपमानित किया जाए? इस नाटक का अंत क्या होगा?
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    Raksha Kalwar

    सितंबर 30, 2024 AT 03:33
    आर्थिक संकट का समाधान तभी संभव है जब नीतियाँ वैज्ञानिक आधार पर बनाई जाएँ, न कि भावनाओं के आधार पर। दिसानायके को चाहिए कि वे आर्थिक विश्लेषण के लिए स्वतंत्र एजेंसियों को आमंत्रित करें, और अपनी घोषणाओं को डेटा से समर्थित करें।
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    himanshu shaw

    अक्तूबर 2, 2024 AT 01:27
    IMF के साथ बातचीत करने का दावा? ये सब धोखा है। ये सब बाहरी शक्तियों के नियंत्रण में आ जाएगा। और फिर जब देश फिर से डूबेगा, तो वो कहेंगे कि ‘हमने तो सब कुछ किया’। ये चक्र कभी नहीं टूटता।
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    Rashmi Primlani

    अक्तूबर 2, 2024 AT 18:32
    दिसानायके की जीत एक नए युग की शुरुआत है। उनकी राजनीति भावनात्मक नहीं, नैतिक है। उन्होंने अपने अतीत के लिए खेद व्यक्त किया है-यह एक बड़ा नैतिक कदम है। अब उन्हें यह साबित करना होगा कि वे विश्वास के बजाय विवेक के साथ चलते हैं।
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    harsh raj

    अक्तूबर 2, 2024 AT 19:38
    मैं तो इस जीत को एक जनता के दिल की धड़कन के रूप में देखता हूँ। ये सिर्फ एक चुनाव नहीं, ये एक आवाज़ है-जिसने कहा, ‘हम बदलना चाहते हैं’। अगर उनके साथ हम सब मिलकर चलें, तो ये देश फिर से खड़ा हो सकता है।
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    Prakash chandra Damor

    अक्तूबर 4, 2024 AT 04:44
    JVP ने कभी विक्रमसिंघे के खिलाफ लड़ा था लेकिन अब वो भी बदल गए अब वो भी IMF के साथ बात कर रहे हैं ये सब ठीक है या नहीं
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    Rohit verma

    अक्तूबर 4, 2024 AT 08:33
    हर नया नेता आता है तो लोग उसे बचाव के रूप में देखते हैं। लेकिन याद रखो-बचाव तभी संभव है जब हम खुद भी बदलें। अनुरा के साथ चलो, लेकिन अपने घर से शुरुआत करो। बिजली बचाओ, प्लास्टिक न फेंको, भ्रष्टाचार को न बढ़ावा दो।
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    Arya Murthi

    अक्तूबर 4, 2024 AT 21:04
    देखो, ये लोग बस एक दिन के लिए आए हैं। लेकिन जब बारिश होगी, तो हमें पता चल जाएगा कि उनके पास छाता था या नहीं। अभी तो बस नाच रहे हैं। बारिश आएगी तो देखेंगे।
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    Manu Metan Lian

    अक्तूबर 6, 2024 AT 03:52
    इस नेता की राजनीति को ‘लोकतांत्रिक विप्लव’ कहना बिल्कुल गलत है। यह तो एक आर्थिक अस्थिरता के दौरान एक अनुभवहीन नेतृत्व की विफलता है। जब तक श्रीलंका के राजनीतिक ढांचे में संरचनात्मक सुधार नहीं होते, तब तक कोई नया नेता भी कुछ नहीं बदल सकता।

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