असदुद्दीन ओवैसी का 'जय फिलिस्तीन' नारा: लोकसभा में विवाद और भाजपा की नाराजगी

असदुद्दीन ओवैसी का 'जय फिलिस्तीन' नारा: लोकसभा में विवाद और भाजपा की नाराजगी जून, 26 2024

असदुद्दीन ओवैसी का 'जय फिलिस्तीन' नारा

लोकसभा में शपथ ग्रहण समारोह स्वाभाविक रूप से एक गंभीर और औपचारिक प्रक्रिया होती है, जिसमें सांसद अपने कर्तव्यों और संविधान के प्रति निष्ठा की शपथ लेते हैं। लेकिन जब एआईएमआईएम प्रमुख और हैदराबाद सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने 'जय फिलिस्तीन' का नारा लगाकर इस औपचारिकता को नया मोड़ दिया, तब यह संसद के हॉल में चर्चा और विवाद का कारण बन गया।

ओवैसी ने अपनी शपथ की शुरुआत उर्दू में की, उसके बाद 'जय भीम, जय मीम', 'जय तेलंगाना', और 'अल्लाह हू अकबर' के साथ शपथ पूरी की। लेकिन जैसे ही उन्होंने 'जय फिलिस्तीन' का नारा लगाया, भाजपा सांसदों का गुस्सा फूट पड़ा। भाजपा सांसदों ने इस नारे को अनुचित कहते हुए इसे लोकसभा की परंपराओं और नियमों का उल्लंघन बताया।

भाजपा सांसदों की प्रतिक्रिया

ओवैसी के इस नारे के बाद भाजपा सांसदों में खलबली मच गई। उन्होंने तत्काल इसका विरोध करते हुए कहा कि ओवैसी का यह नारा संसद के नियमों और परंपराओं का उल्लंघन करता है। लोकसभा में भाजपा के वरिष्ठ सांसद राधामोहन सिंह ने स्थिति को शांत करने की कोशिश करते हुए कहा कि शपथ ग्रहण के दौरान केवल शपथ ही रिकॉर्ड की जाएगी और बाकी सभी टिप्पणियां हटाई जाएंगी।

विवाद का विस्तार और स्पीकर का निर्णय

प्रोटेम स्पीकर भरतृहरि महताब ने अंत में यह स्पष्ट करते हुए कहा कि केवल शपथ ही रिकॉर्ड की जाएगी और बाकी सभी टिप्पणियां रिकॉर्ड से हटा दी जाएंगी। लेकिन यह मामला यहीं नहीं रुका, ओवैसी ने अपने नारे का बचाव करते हुए कहा कि महात्मा गांधी भी फिलिस्तीन के समर्थक थे। उन्होंने सवाल किया कि उन्होंने संविधान का कौन सा प्रावधान उल्लंघन किया है।

AIMIM नेताओं और समर्थकों का समर्थन

AIMIM नेताओं और समर्थकों का समर्थन

AIMIM नेताओं और समर्थकों ने ओवैसी के नारे का समर्थन किया, उन्होंने भाजपा पर पलटवार करते हुए कहा कि जब ओवैसी का नाम पुकारा गया तब कुछ सांसदों ने 'जय श्री राम' के नारे लगाए। यहां तक कि तेलंगाना भाजपा ने ओवैसी की आलोचना की और कहा कि उन्हें फिलिस्तीन के मुद्दे को उठाने में शर्म आनी चाहिए।

भाजपा के वरिष्ठ नेता और विभिन्न प्रतिक्रियाएं

केंद्रीय कोयला मंत्री और भाजपा तेलंगाना इकाई के अध्यक्ष जी किशन रेड्डी ने ओवैसी के नारे को 'पूरी तरह से गलत' बताया। केंद्रीय संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने भी कहा कि सदन इस नारे के नियमों की जांच करेगा।

भाजपा के गोशामहल विधायक राजा सिंह ने एक वीडियो जारी करते हुए ओवैसी से कहा कि वे भारत छोड़कर फिलिस्तीन जाएं और वहां के लिए लड़ें। ये सभी प्रतिक्रियाएं इस बात को दर्शाती हैं कि ओवैसी के नारे ने संसद के भीतर और बाहर दोनों जगह व्यापक चर्चा छेड़ दी है।

समाज में भावनाओं का प्रभाव

ओवैसी का 'जय फिलिस्तीन' नारा भारतीय राजनीति और समाज में भावनाओं का ज्वार पैदा करने में सफल रहा है। इस विवाद ने न केवल सांसदों के बीच एक नई चर्चा को जन्म दिया, बल्कि समाज के विभिन्न वर्गों में भी प्रतिक्रियाएं उत्पन्न कीं।

यह वापस लाता है कि संसद एक ऐसा मंच है जहां हमारे नेता देश और समाज के महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा करते हैं, लेकिन जब व्यक्तिगत आस्थाएं और विचारधाराएं इस मंच पर प्रकट होती हैं, तो यह अक्सर भारित विवाद बन जाता है। ओवैसी का नारा और उसके जवाब ने भारतीय राजनीति में एक नए प्रकार की बहस को जन्म दिया है, जो शायद हमें यह सोचने पर मजबूर कर सकता है कि हमारे नेता कितनी हद तक अपने व्यक्तिगत विचारों को सार्वजनिक मंच पर लाने के हकदार हैं।

संदर्भ और इतिहास की गूंज

संदर्भ और इतिहास की गूंज

फिलिस्तीन का मुद्दा न केवल भारत के भीतर बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी एक संवेदनशील मुद्दा रहा है। महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू और अन्य भारतीय नेताओं ने फिलिस्तीन के लिए समर्थन व्यक्त किया है। इस ऐतिहासिक संदर्भ में, ओवैसी का नारा भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के आदर्शों के अनुरूप है। लेकिन जब यह एक सार्वजनिक मंच पर, विशेषकर संसद में गूंजता है, तो यह राजनीति की परंपराओं के साथ टकराव का कारण बनता है।

यह घटना हमें याद दिलाती है कि भारतीय संसद एक ऐसा स्थान है जहां विचारों, विश्वासों और विचारधाराओं का स्वतंत्र रूप से आदान-प्रदान होता है। लेकिन साथ ही, यह हमें यह भी याद दिलाती है कि इस आदान-प्रदान को एक निश्चित मर्यादा और अनुशासन के तहत बनाए रखना चाहिए।

अंततः, ओवैसी का 'जय फिलिस्तीन' नारा भारतीय राजनीति में एक यादगार घटना के रूप में दर्ज होगा, जो आने वाले समय में भी चर्चाओं का विषय बना रहेगा।