CRPF जवान मुनिर अहमद की बर्खास्तगी: पाकिस्तानी पत्नी, वीजा ओवरस्‍टेय और सुरक्षागत सख्ती

CRPF जवान मुनिर अहमद की बर्खास्तगी: पाकिस्तानी पत्नी, वीजा ओवरस्‍टेय और सुरक्षागत सख्ती

CRPF जवान, पाकिस्तानी पत्नी और वीजा विवाद की पूरी कहानी

जम्मू-कश्मीर में तैनात CRPF कांस्टेबल मुनिर अहमद इन दिनों खबरों में छाए हुए हैं। वजह – आरोप है कि उन्होंने अपनी पाकिस्तानी पत्नी मीनल खान की शादी को छुपाया और उसका वीजा खत्म होने के बाद भारत में गैरकानूनी तौर पर रहने में मदद की। केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (CRPF) ने मई 2025 में मुनिर को अचानक सेवा से बाहर कर दिया। यह मामला सिर्फ एक जवान की निजी जिंदगी से जुड़ा नहीं, बल्कि सुरक्षा से जुड़े कई पेचीदा सवाल भी खड़े करता है।

मुलाकात का सिलसिला जुदा था – मीनल फरवरी 2024 में वाघा-अटारी बॉर्डर से भारत आई, उसके पास कम समय के लिए वीजा था, जिसकी मियाद मार्च 22, 2024 को खत्म हो गई थी। इस दौरान मुनिर अहमद का कहना है कि उन्होंने सारे जरूरी दस्तावेज, जैसे पासपोर्ट की कॉपी, परिवार और स्थानीय समुदाय के लोगों के हलफनामे, और डीजीपी के स्तर तक सभी कागजात CRPF मुख्यालय को भेजे। CRPF के दस्तावेजों के अनुसार, मुनिर ने वीडियो कांफ्रेंस के जरिए मई 2024 में मीनल से निकाह किया। अहमद की दलील है कि अधिकारियों को सब पहले से बताया गया था और 30 अप्रैल 2024 को शादी की अनुमति भी मिली।

लेकिन CRPF का आरोप है कि मुनिर ने शादी की जानकारी छुपाई और जानबूझकर वीजा खत्म होने के बावजूद मीनल को भारत में शरण दी। नियमों के मुताबिक, किसी सुरक्षाकर्मी को विदेशी नागरिक से शादी करने से पहले डिटेल में जानकारी और मंजूरी लेनी होती है। CRPF कहती है कि अहमद ने प्रक्रिया का पालन नहीं किया और सेवा आचरण नियमों का उल्लंघन किया।

आतंकवादी हमले के बाद बढ़ी सतर्कता और कानूनी लड़ाई

इस घटना का समय भी सब कुछ कहता है। अप्रैल 2024 में पहलगाम में आतंकी हमले में 26 लोगों की मौत ने जम्मू-कश्मीर और पूरे देश में अलर्ट बढ़ा दिया। इसके बाद से सरकार ने पाकिस्तानी नागरिकों के वीजा और भारत में उनकी मौजूदगी पर कड़ी नजर रखनी शुरू कर दी। इसी के तहत, मीनल समेत कई पाकिस्तानी नागरिकों को देश छोड़ने के लिए कहा गया। CRPF ने इसी पृष्ठभूमि में मुनिर पर आरोप तय किए।

मुनिर अहमद किसी भी आरोप को नकारते हैं। उनका कहना है कि उन्होंने रिश्ता छुपाया नहीं, बल्कि हर कागजदारी पूरी की। अब मुनिर इस फैसले को अदालत में चुनौती देने की बात कर रहे हैं। उनके मुताबिक, जिसने हर कदम पर नियमों का पालन किया, उसे इस तरह सेवा से हटाना नाइंसाफी है। इस मसले ने सुरक्षा बलों में शादी और नागरिकता जैसे मामलों को लेकर प्रणाली की पारदर्शिता और मानवीय पक्ष पर बहस छेड़ दी है।

मामले की गहराई यह है कि जहां सिक्योरिटी एजेंसियां हर संदेह को गंभीरता से लेती हैं, वहीं जवानों की व्यक्तिगत जिंदगी के फैसलों पर भी सख्ती जरूरी है या नहीं, इस पर भी अब सवाल उठ रहे हैं। अदालत का निर्णय जहां भी झुके, यह मामला देश की सुरक्षा, लगातार बदलती नीतियों और व्यक्तिगत अधिकारों की टकराहट का बड़ा उदाहरण बनता जा रहा है।