गंगापुर मध्य विद्यालय में मनाया गया विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस, ठाकुर ने की ज़रूरत पर ज़ोर

जब अखिलेश ठाकुर, प्रधानाध्यापक गंगापुर मध्य विद्यालय ने 10 अक्टूबर 2024 को सरायरंजन प्रखंड के इस स्कूल में विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस का समारोह आयोजित किया, तो पूरे गाँव में एक नई ऊर्जा का संचार हुआ। इस कार्यक्रम का उद्देश्य छात्रों, शिक्षकों और स्थानीय समुदाय को मानसिक स्वास्थ्य के महत्व से रूबरू कराना था, ताकि इस विषय को शारीरिक स्वास्थ्य जितनी ही प्राथमिकता मिले।
इतिहासिक पृष्ठभूमि
विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस पहली बार 1992 में विश्व मानसिक स्वास्थ्य महासंघ द्वारा स्थापित किया गया था। तब से हर साल 10 अक्टूबर को इस दिन को मनाते हुए विश्व भर में जागरूकता अभियानों का आयोजन होता आया है। भारत में इस दिवस की पहचान 2000 के दशक में शुरू हुई, जब कई NGOs और स्वास्थ्य संस्थानों ने स्कूल‑कॉलेज‑कॉम्प्लेक्स में सत्र आयोजित किए।
2025 की थीम ‘विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार “मानसिक स्वास्थ्य मानवीय आपात स्थितियों में” है, जो प्राकृतिक आपदाओं और महामारी जैसी स्थितियों में मानसिक स्वास्थ्य के महत्व को रेखांकित करती है। इस थीम ने गंगापुर में आयोजित स्थानीय कार्यक्रम को एक राष्ट्रीय स्तर की दिशा‑दर्शिका प्रदान की।
कार्यक्रम की मुख्य बातें
समारोह की शुरुआत प्रधानाध्यापक ठाकुर ने अपनी भावपूर्ण टिप्पणी से की। उन्होंने कहा, "जब तक मानसिक स्वास्थ्य को शारीरिक स्वास्थ्य जितनी प्राथमिकता नहीं दी जाएगी, तब तक इस बढ़ती समस्या पर नियंत्रण पाना मुश्किल होगा।" इस दौरान, राज कुमार, नूतन कुमारी, ज्योति कुमारी और रुबी कुमारी जैसे शिक्षक ने छात्रों के साथ छोटे‑छोटे रोल‑प्ले, मनोवैज्ञानिक परीक्षण और समूह चर्चा कराई।
मुख्य आकर्षण रहा एक इंटरैक्टिव क्विज़, जहाँ छात्रों ने WHO के द्वारा जारी आंकड़ों पर सवाल‑जवाब किया। कुछ चौंकाने वाले आँकड़े थे, जैसे कि अमेरिका में लगभग 3 करोड़ लोग अभी भी उचित मानसिक स्वास्थ्य देखभाल तक नहीं पहुँच पाए हैं, और 10‑14 वर्ष की आयु के बच्चों में आत्महत्या दूसरा प्रमुख कारण बन गया है। ये आँकड़े स्थानीय स्वास्थ्य अधिकारी को भी आश्चर्यचकित कर गए।
- विश्व भर में हर साल 10 अक्टूबर को मनाया जाता है।
- 2025 की थीम: “मानसिक स्वास्थ्य मानवीय आपात स्थितियों में”。
- WHO के अनुसार, 1 में 5 वयस्कों को मानसिक बीमारियाँ झेलनी पड़ती हैं।
- भारत में किशोरों में 1 में 6 को तनाव‑संबंधी समस्याएँ आती हैं।
स्थानीय प्रतिक्रिया और समर्थन
कार्यक्रम के बाद गंगापुर के माता‑पिता समूह ने कहा कि इस तरह की पहल से बच्चों में आत्म‑सुरक्षा की भावना बढ़ेगी। एक माँ ने कहा, "पहले हम केवल शारीरिक रोगों पर ही ध्यान देते थे, अब सोचते हैं कि बच्चों की भावनात्मक जरूरतें भी उतनी ही ज़रूरी हैं।" वहीं, जिला स्वास्थ्य अधिकारी ने बताया कि उन्होंने अगले महीने पूरे प्रखंड में मानसिक स्वास्थ्य जागरूकता पोस्टर और हेल्प‑लाइन नंबरों को अटेच करने की योजना बनायी है।
शिक्षक राज कुमार ने अपनी टिप्पणी में कहा, "हमारी भूमिका केवल पढ़ाई‑लिखाई तक सीमित नहीं रही, अब हम छात्रों को मानसिक रूप से भी सशक्त बनाने की जिम्मेदारी लेकर आगे बढ़ेंगे।" इस प्रकार, स्कूल‑आधारित इंटरवेंशन का मॉडल अब कई निकटस्थ गांवों में दोहराने की बात चल रही है।

प्रभाव और भविष्य की दिशा
इतने छोटे‑से स्कूल में आत्म‑जागरूकता के सत्र चलाने से दीर्घकालिक सामाजिक बदलाव की संभावना है। विशेषज्ञ मानते हैं कि प्रारम्भिक पहचान और उपचार के लिए स्कूल सबसे बेहतर मंच है। WHO ने भी कहा है कि किशोरावस्था में मानसिक स्वास्थ्य विकारों की पहचान करने से जीवन भर की समस्याओं को कम किया जा सकता है।
आगामी महीनों में गंगापुर मध्य विद्यालय एक डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म शुरू करेगा, जहाँ छात्रों को ऑनलाइन मनो‑परामर्श, तनाव‑प्रबंधन के टिप्स और साप्ताहिक वेबिनार उपलब्ध कराए जाएंगे। इस पहल को राष्ट्रीय परामर्श मंच के सहयोग से फंडिंग भी मिलने की उम्मीद है।
पृष्ठभूमि: मानसिक स्वास्थ्य का राष्ट्रीय परिदृश्य
भारत में मानसिक स्वास्थ्य सतह पर अभी भी एक तुच्छ विषय माना जाता है। राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NMHS) 2015‑16 के अनुसार, लगभग 15% वयस्कों को कोई न कोई मानसिक विकार था, परन्तु केवल 10% ही उपचार तक पहुँच पा सके। इस दिशा‑में WHO द्वारा जारी किए गए मार्गदर्शिकाएँ—जैसे ‘समय के तनाव में क्या मायने रखता है: एक चित्रित मार्गदर्शिका’, ‘mhGAP‑HIG’—सरकार और NGOs को कार्रवाई करने के लिए प्रेरित कर रही हैं।
सरायरंजन प्रखंड ने 2023 में “मानसिक स्वास्थ्य किट” कार्यशाला आयोजित की, जहाँ ग्रामीण डॉक्टर्स को बुनियादी परामर्श तकनीक सिखाई गई। गंगापुर के इस स्कूल में आज हुए सत्र, उन पहलों का एक स्थानीय विस्तार है, जो ग्रामीण भारत में मानसिक स्वास्थ्य के प्रति संवेदनशीलता बढ़ाने के लिए आवश्यक कदम हैं।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
इस कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य क्या था?
मुख्य उद्देश्य छात्रों, शिक्षकों और स्थानीय परिप्रेक्ष्य में मानसिक स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता बढ़ाना, लक्षण पहचान को सरल बनाना और आगे की मदद के लिए उपलब्ध संसाधनों की सूचना देना था। यह पहल WHO की 2025 थीम के साथ संरेखित थी।
गंगापुर मध्य विद्यालय ने आगे कौन‑सी योजनाएँ बनाई हैं?
स्कूल ने अगले महीने से ऑनलाइन मानसिक स्वास्थ्य मंच शुरू करने, साप्ताहिक परामर्श सत्र आयोजित करने और राष्ट्रीय परामर्श मंच के साथ मिलकर छात्र‑केन्द्रित हेल्प‑लाइन स्थापित करने की योजना बनाई है।
विश्व स्तर पर मानसिक स्वास्थ्य के बारे में कौन‑से आँकड़े प्रमुख हैं?
WHO के अनुसार, विश्व भर में 1 में 5 वयस्कों को किसी न किसी मानसिक बीमारी का सामना करना पड़ता है, और 10‑14 वर्ष के बच्चों में आत्महत्या दूसरा प्रमुख मृत्यु कारण बन चुका है। भारत में 15% वयस्कों को मानसिक विकार है, परन्तु केवल 10% ही उपचार प्राप्त करते हैं।
क्यों स्कूल‑आधारित जागरूकता जरूरी है?
शिक्षा संस्थान बच्चे के दैनिक जीवन का बड़ा हिस्सा होते हैं; यहाँ शुरुआती पहचान और समर्थन प्रदान करने से दीर्घकालिक सामाजिक खर्च घटता है और स्वस्थ मानवीय विकास की नींव मजबूत होती है।
भविष्य में WHO इस थीम को कैसे आगे बढ़ाएगा?
WHO ने 2025 के लिए कई डिजिटल टूलकिट जारी किए हैं, जैसे ‘समस्या प्रबंधन प्लस (PM+)’ और ‘mhGAP‑HIG’। ये टूलकिट आपातकालीन परिस्थितियों में मानसिक स्वास्थ्य सहायता को सुलभ बनाने के लिए डिज़ाइन किए गए हैं, और आने वाले वर्षों में स्थानीय संगठनों के साथ साझेदारी करके विस्तारित किए जाएंगे।
Chandan kumar
अक्तूबर 11, 2025 AT 03:21सच कहूँ तो इस तरह की इवेंट्स गाँव में बस आवाज़ बन कर रह जाती है।
Anand mishra
अक्तूबर 11, 2025 AT 08:55विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस का महत्व हमारे सभ्यताओं में गहरी जड़ें रखता है, क्योंकि प्राचीन भारत में मन की शांति को आध्यात्मिक विकास के मूलभूत स्तम्भ के रूप में माना गया था। गंगापुर जैसे छोटे गाँवों में इस जागरूकता को लाना एक सामाजिक परिवर्तन का अग्नि‑स्रोत हो सकता है। इतिहास में जब गुरुओं ने शिष्यों को मन की शान्ति की शिक्षा दी, तब ही उनका मूल उद्देश्य संपूर्ण स्वास्थ्य था, न कि केवल शारीरिक स्वास्थ्य। आज की तेज़‑तर्रार दुनिया में इसी सिद्धान्त को पुनर्जीवित करना न केवल आवश्यक है बल्कि अनिवार्य भी। स्कूल का मंच बच्चों के मनोविज्ञान को समझने के लिए सबसे उपयुक्त स्थान है, क्योंकि वे अपने भावनाओं को खुलकर व्यक्त करने में सक्षम होते हैं। इस पहल से न केवल छात्रों को आत्म‑सुरक्षा की भावना मिलेगी, बल्कि उनके माता‑पिता भी मानसिक स्वास्थ्य के बारे में जागरूक होंगे। वर्णित आँकड़े, जैसे कि 1 में 5 वयस्कों को मानसिक बीमारी का सामना करना पड़ता है, यह दर्शाते हैं कि यह समस्या सार्वभौमिक है। ग्रामीण क्षेत्रों में अक्सर मानसिक स्वास्थ्य को समझा ही नहीं जाता, जिससे कई युवाओं की पीड़ाएँ गुप्त रह जाती हैं। प्रधानाध्यापक ठाकुर का यह कदम, इसलिए भी सराहनीय है क्योंकि वह शिक्षा के साथ‑साथ मनो‑संतुलन को भी प्राथमिकता दे रहे हैं। इस तरह के सत्रों के बाद छात्रों में सहानुभूति और आपसी समर्थन की भावना विकसित होती है, जो भविष्य में सामाजिक बंधनों को मजबूत करती है। डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म की शुरुआत से छात्रों को 24×7 परामर्श की सुविधा मिल सकेगी, जो ग्रामीण स्वास्थ्य सेवाओं की खामियों को पाटेगी। WHO के द्वारा जारी टूलकिट, जैसे ‘mhGAP‑HIG’, को स्थानीय स्तर पर लागू करना एक रणनीतिक कदम है, जिससे आपातकालीन स्थितियों में शीघ्र मदद मिल सकेगी। राष्ट्रीय परामर्श मंच के सहयोग से फंडिंग मिलने से यह कार्यक्रम सतत बन पाएगा और अन्य गाँवों में भी दोहराया जा सकेगा। इस पहल का दीर्घकालिक प्रभाव यह हो सकता है कि ग्रामीण युवाओं में आत्महत्या जैसी गंभीर घटनाओं में उल्लेखनीय गिरावट आए। स्थानीय स्वास्थ्य अधिकारी द्वारा पोस्टर्स और हेल्प‑लाइन नंबरों का प्रचार भी इस जागृति को स्थायी बनाता है। अंत में, यदि हम इस दिशा में निरंतर प्रयास करते रहें तो भारत में मानसिक स्वास्थ्य को सामाजिक कल्याण का अभिन्न भाग बनाना संभव होगा।
Prakhar Ojha
अक्तूबर 11, 2025 AT 14:28ये सारी बातें सुनकर मेरा दिमाग आग की तरह जलता है-जैसे कि हम हमेशा पक्की बातें करते रहे, पर असली मदद नहीं मिलती! स्कूल में क्विज़ तो ठीक है, पर सच्ची परामर्श की तो कली नहीं पहुंची। अगर सरकार सच्चे दिल से काम करे तो ऐसी इवेंट्स रोज़मर्रा की जिंदगी बन जाएँगे। अब बस दिखावा छोड़ दो और ठोस कदम उठाओ!