जोहो के श्रीधर वेम्बू का फ्रेशवर्क्स छंटनी पर विरोध: शेयरधारकों की प्राथमिकता बनाम कर्मचारियों का महत्व
जोहो के संस्थापक श्रीधर वेम्बू ने हाल ही में फाइनेंशियल वर्ल्ड और कॉर्पोरेट समाज में एक गहन चर्चा की शुरुआत करते हुए 'वास्तविक' पूंजीवाद और समाजवाद के बीच अंतर को लेकर एक नई बहस छेड़ दी है। उनका कहना है कि कंपनियों को अपने कर्मचारियों को शेयरधारकों पर प्राथमिकता देनी चाहिए, विशेष रूप से उस समय जब छंटनी की नौबत आती है, जैसा कि हाल ही में फ्रेशवर्क्स द्वारा 660 कर्मचारियों की छंटनी के दौरान देखा गया। यह घटना तब और गंभीर हो जाती है जब यह स्पष्ट होता है कि फ्रेशवर्क्स के पास एक अरब डॉलर की नकद राशि है और यह 20% की दर से विकास कर रही है।
श्रीधर वेम्बू की टिप्पणियां: वर्तमान स्थिति पर दृष्टिकोण
श्रीधर वेम्बू ने हाल ही में फ्रेशवर्क्स द्वारा की गई इस छंटनी को 'नग्न लालच' करार दिया है। उनका तर्क है कि इस अमूर्त लालच के बजाय कंपनी को अपने रकम के एक हिस्से, $400 मिलियन, को किसी नये व्यापार में निवेश करना चाहिए था, बजाए कि वे स्टॉक खरीदने में प्रयोग करें। वेम्बू के अनुसार वास्तविक पूंजीवाद केवल शेयरधारकों को खुश रखने के बारे में नहीं है, बल्कि यह कर्मचारियों की भलाई और उनके प्रति निष्ठा को भी बढ़ावा देता है। वे कहते हैं कि ऐसे लालच में घिरने से कंपनियों का विकास नहीं होगा, बल्कि यह उनके बुनियादी मानवीय मूल्यों को आघात पहुँचाता है।
शेयरधारकों का प्राथमिकता: कंपनियों की असली नीति?
वर्तमान कॉर्पोरेट संस्कृति, विशेष रूप से अमेरिकी प्रणाली में, अक्सर शेयरधारकों के लाभ की प्राथमिकता को महत्व देती है। वेम्बू का मानना है कि यह दृष्टिकोण भारतीय कॉर्पोरेट संस्कृति के लिए उपयुक्त नहीं है और भारतीय कंपनियों को इसे अंधाधुंध अपनाने से बचना चाहिए। उन्होंने इंटेल को एक उदाहरण के रूप में उजागर किया, जिसका विभाजन इसीलिए हुआ क्योंकि उन्होंने अपने कर्मचारियों की तुलना में वॉल स्ट्रीट की प्राथमिकताओं को अधिक महत्व दिया।
कर्मचारियों की भलाई: 'सच्चा' पूंजीवाद का मूल
वेम्बू ने विभिन्न कंपनियों, जैसे कि एनवीडिया, एएमडी, और ताइवान की टीएसएमसी का उदाहरण दिया, जिन्होंने अपने कर्मचारियों की भलाई को केंद्र में रखा है और उनकी सफलता को सच्चे पूंजीवाद का प्रमाण बताया है। उनका मानना है कि एक कंपनी की दीर्घकालिक स्थिरता का आधार इसके कर्मचारी होते हैं, जो उनके उत्पाद की गुणवत्ता में योगदान देते हैं और उनकी सेवा का प्रतिफल देते हैं।
जोहो और फ्रेशवर्क्स के बीच प्रतिस्पर्धा और कानूनी विवाद का पुराना इतिहास है। 2020 के एक मुकदमे में, जोहो ने आरोप लगाया था कि फ्रेशवर्क्स ने गोपनीय जानकारी चुरा ली थी। ऐसे विवादपूर्ण परिदृश्य में वेम्बू की प्रतिक्रिया ने उद्योग के सदस्यों और पर्यवेक्षकों के बीच एक नई चर्चा की शुरुआत की है।
भारत का भविष्य: सीख और नेतृत्व
वेम्बू का दृष्टिकोण ऐसा लगता है कि अब भारत के लिए एक विकल्प प्रस्तुत करता है कि वह अपनी आर्थिक और व्यावसायिक प्रक्रियाओं का पुनः मूल्यांकन कैसे कर सकता है। उन्हें भरोसा है कि अन्य देशों में अस्तित्व में आने वाली व्यवस्था से सीख लेते हुए भारत को अपनी स्वतंत्र पहचान और दृष्टिकोण को बनाए रखना चाहिए। यह धारणा कि पूंजीवाद चुनिंदा लाभार्थियों का नहीं, बल्कि पूरे इक्विटी के लिए होता है, काफी मायने रखती है।
harsh raj
नवंबर 9, 2024 AT 22:35श्रीधर वेम्बू बिल्कुल सही कह रहे हैं। कंपनी जब अरबों की नकदी रखती है और फिर कर्मचारियों को निकाल देती है, तो ये कोई बिज़नेस नहीं, बल्कि लूट है। शेयरधारकों को खुश करने के लिए इंसानों की जिंदगी बर्बाद करना किसी भी सभ्य समाज के लिए अस्वीकार्य है। फ्रेशवर्क्स ने जो किया, वो न सिर्फ नीचा, बल्कि बेवकूफ़ी भी है।
Prakash chandra Damor
नवंबर 11, 2024 AT 11:57मुझे लगता है कि वेम्बू का राय बहुत अच्छा है लेकिन ये सब बातें अमेरिका में चलती हैं भारत में तो कंपनियां खुद को बचाने के लिए भी झूठ बोलती हैं और फिर भी नौकरी नहीं देती
Rohit verma
नवंबर 12, 2024 AT 00:21ये बात सुनकर दिल भर गया 😊 अगर हर कंपनी इस तरह सोचती तो भारत दुनिया का सबसे अच्छा जगह बन जाता। एनवीडिया और टीएसएमसी जैसी कंपनियां दिखा रही हैं कि इंसानों को सम्मान दोगे तो वो तुम्हारे लिए जादू कर देंगे। ये नहीं कि बस शेयर प्राइस बढ़ाओ और नौकरी काट दो।
Arya Murthi
नवंबर 12, 2024 AT 22:37इतना बड़ा कंपनी जिसके पास अरबों की नकदी है और फिर 660 लोगों को निकाल देना... ये तो बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगा। मैंने अभी तक ऐसा कभी नहीं देखा कि कोई कंपनी अपने कर्मचारियों को इतना आसानी से त्याग दे। अगर ये बात भारत में चल जाए तो ये नहीं कि बस लोग बेरोजगार होंगे, बल्कि विश्वास भी खत्म हो जाएगा।
Manu Metan Lian
नवंबर 13, 2024 AT 04:22मैं आपके आदर्शवादी दृष्टिकोण के प्रति आश्चर्यचकित हूँ। क्या आप वाकई सोचते हैं कि एक पब्लिक कंपनी अपने शेयरधारकों के प्रति अपनी विश्वसनीयता को नजरअंदाज कर सकती है? यह एक नियमित व्यावसायिक निर्णय है, न कि नैतिक अपराध। वेम्बू के जैसे लोग भारत के वास्तविक आर्थिक चुनौतियों से अनजान हैं। बाजार नियमों का उल्लंघन नहीं किया जा सकता।
Debakanta Singha
नवंबर 15, 2024 AT 02:47अगर ये सब सच है तो फ्रेशवर्क्स बस एक धोखेबाज़ कंपनी है। अरबों की नकदी है, ग्रोथ है, फिर भी लोगों को निकाल दिया? ये तो बस बदमाशी है। वेम्बू ने सही कहा - इंसान ही कंपनी का असली पूंजी है। जो इसे समझता है, वो लंबे समय तक चलता है। बाकी सब झूठ है।