पैरिस 2024: फ्रेंच ने स्टेड दे फ्रांस में दूसरा स्वर्ण पदक जीता

पैरिस 2024: फ्रेंच ने स्टेड दे फ्रांस में दूसरा स्वर्ण पदक जीता

उजरा फ्रेंच: पैरिस 2024 में दूसरा स्वर्ण पदक

पैरिस में आयोजित 2024 पैरालंपिक खेलों में अमेरिका के 19 वर्षीय एथलीट उजरा फ्रेंच ने उत्कृष्ट प्रदर्शन करते हुए स्टेड दे फ्रांस में दूसरा स्वर्ण पदक हासिल किया। इस युवा एथलीट ने पुरुषों के हाई जंप T63 फाइनल में 1.94 मीटर की छलांग लगाकर नया पैरालंपिक रिकॉर्ड बनाया। एक ही खेल में दो स्वर्ण पदक जीतने वाले फ्रेंच की यह सफलता उन्हीं के द्वारा पुरुषों के 100 मीटर T63 इवेंट में स्वर्ण पदक जीतने के बाद आई।

फ्रेंच की इस उपलब्धि ने उन्हें पैरालंपिक इतिहास में एक खास मुकाम पर ला खड़ा किया है। उन्होंने न केवल खेल के मैदान पर बल्कि उससे बाहर भी महत्वपूर्ण संदेश दिया है। एक अम्प्यूटी के रूप में उजरा का उद्देश्य विकलांगता के प्रति धारणाओं को बदलना और उन्हें सामान्य बनाना है। उनका मानना है कि वे पैरालंपिक आंदोलन का नेतृत्व 2028 तक करेंगे और इसी दिशा में आगे बढ़ेंगे।

शारद कुमार: भारत के लिए पराक्रम

फ्रेंच के बाद, भारत के शारद कुमार ने भी अद्भुत प्रदर्शन किया और T42 श्रेणी में सिल्वर मेडल जीता। शारद ने पैरालंपिक रिकॉर्ड बनाते हुए यह सफलता प्राप्त की और भारतीय खेल प्रेमियों का गर्व बढ़ाया।

जेयडिन ब्लैकवेल: एक और स्वर्ण पदक

अमेरिका के जेयडिन ब्लैकवेल ने भी अपने दूसरे पैरालंपिक स्वर्ण पदक के साथ एक विश्व रिकॉर्ड सेट किया। पुरुषों के 400 मीटर T38 इवेंट में 48.49 सेकंड के समय के साथ ब्लैकवेल ने यह बड़ी सफलता पाई। ब्लैकवेल की जीत के बाद साथी धावक रयान मिद्रानो ने सिल्वर मेडल जीता, जिससे यह अमेरिका के लिए एक प्रमुख जीत बन गई।

अन्य उल्लेखनीय प्रदर्शन

अज़रबैजान की लामिया वालियावा ने महिलाओं के 100 मीटर T13 में अपने पहले पैरालंपिक स्वर्ण पदक के साथ एक विश्व रिकॉर्ड बनाकर जीत हासिल की। उनका समय 11.76 सेकंड था। इसी प्रकार, ब्राजील की जेरुसा जेबर डॉस सैंटोस ने महिलाओं के 100 मीटर T11 में अपने पहले पैरालंपिक स्वर्ण पदक जीता, उनका मार्गदर्शक गेब्रियल एपरासिदो डॉस सैंटोस गार्सिया था।

नीदरलैंड्स की किम्बर्ली अल्केमेड ने महिलाओं के 200 मीटर T64 फाइनल में अपने पहले पैरालंपिक स्वर्ण पदक को जीता, जो उनके लिए एक महत्वपूर्ण निजी विजय थी।

अन्य पदक विजेता

अन्य पदक विजेता

अर्जेंटीना के ब्रायन लियोनेल इम्पेलिज्जेरी ने पुरुषों के लोंग जंप T37 में पदक जीता, और यूक्रेन के ओलेक्ज़ांदर यारोई ने पुरुषों के शॉट पुट F20 में सिल्वर मेडल प्राप्त किया।

इन सभी खिलाड़ियों की सफलता ने न केवल उनकी व्यक्तिगत महत्त्वाकांक्षाओं को पूरा किया, बल्कि उनके देशों के लिए भी गौरव का कारण बनी। इन खेलों ने दुनिया भर के प्रशंसकों और युवाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत बना दिया है, जो अब आने वाले समय में अपने-अपने क्षेत्र में सफलता पाने के लिए प्रयास करेंगे।

12 टिप्पणि

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    Khaleel Ahmad

    सितंबर 6, 2024 AT 12:16

    बहुत अच्छा प्रदर्शन सबने किया है
    इन खिलाड़ियों ने दिखाया कि शरीर की सीमाएं असली सीमाएं नहीं होती
    ये लोग जीत रहे हैं न कि बस भाग रहे हैं

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    Shruti Singh

    सितंबर 8, 2024 AT 11:35

    शारद कुमार का सिल्वर मेडल भारत के लिए सबसे बड़ी बात है
    हमारे देश के लिए गर्व की बात है और ये बस शुरुआत है

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    Raksha Kalwar

    सितंबर 8, 2024 AT 22:36

    उजरा फ्रेंच की 1.94 मीटर की छलांग वाकई इतिहास बना रही है
    कोई भी जिसने इसे देखा हो वो जीवन भर याद रखेगा
    ये खेल नहीं, ये जीवन का संदेश है

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    Chandrasekhar Babu

    सितंबर 9, 2024 AT 20:08

    उल्लेखनीय रूप से, T63 श्रेणी में 1.94 मीटर का रिकॉर्ड एथलेटिक्स में एक निर्णायक बिंदु है, विशेष रूप से जब इसे एक 19-वर्षीय एथलीट द्वारा अधिकतम वायु डायनामिक्स और कार्बन-फाइबर प्रोस्थेटिक्स के संयोजन से प्राप्त किया गया हो
    यह अंतर्राष्ट्रीय पैरालंपिक कमेटी के लिए वर्गीकरण प्रणाली के संदर्भ में एक नए आयाम की ओर इशारा करता है

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    Pooja Mishra

    सितंबर 11, 2024 AT 06:51

    ये सब बहुत अच्छा है लेकिन भारत के खिलाड़ियों को सरकार ने क्या दिया? नहीं कुछ भी
    ये लोग खुद की कमजोर बुनियादों पर खेल रहे हैं
    और फिर भी ये जीत रहे हैं? ये तो बहुत अजीब है
    हमें इन लोगों को नहीं बल्कि उनके लिए बुनियादी व्यवस्था बनानी चाहिए
    जब तक हम अपने खिलाड़ियों के लिए अच्छी ट्रेनिंग सुविधाएं नहीं देंगे, तब तक ये सब बस नाटक है

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    Rashmi Primlani

    सितंबर 13, 2024 AT 05:20

    पैरालंपिक्स का मूल उद्देश्य न केवल जीत है, बल्कि व्यक्ति के भीतर की अदृश्य शक्ति को दर्शाना है
    जब एक व्यक्ति अपनी शारीरिक सीमाओं को तोड़ता है, तो वह एक समाज के विचारों को भी बदल देता है
    उजरा फ्रेंच ने न केवल एक रिकॉर्ड बनाया, बल्कि एक नई पीढ़ी के लिए एक दृष्टिकोण दिया है
    शारद कुमार ने दिखाया कि भारत में भी ऐसे खिलाड़ी हैं जो दुनिया के सामने अपना सम्मान बचा सकते हैं
    ये खिलाड़ी नहीं, ये अद्भुत जीवन दर्शन हैं

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    avinash jedia

    सितंबर 14, 2024 AT 10:29

    अरे भाई ये सब तो बहुत बोरिंग है
    क्या आप लोग इतने लंबे लेख लिख रहे हैं?
    कोई नहीं जानता कि ये लोग कौन हैं
    मैंने तो बस एक बार टीवी पर देखा था

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    Liny Chandran Koonakkanpully

    सितंबर 15, 2024 AT 19:31

    अरे ये सब तो बहुत फेक है
    ये सब जो रिकॉर्ड बनाए हैं वो तकनीकी फर्जीवाद है
    क्या आपने कभी सोचा कि ये प्रोस्थेटिक्स असली शरीर से ज्यादा ताकतवर हैं?
    मैंने एक डॉक्यूमेंट्री देखा था जहां कहा गया था कि ये लोग अपने लिए नहीं बल्कि देश के लिए खेल रहे हैं
    ये सब राष्ट्रीय प्रचार है
    और फिर भारत के लोग इतने उत्साहित क्यों हैं?
    हमारे देश में तो बच्चे भूखे हैं और ये लोग रिकॉर्ड बना रहे हैं?
    मैंने एक बार बिहार में एक बच्चे को देखा था जिसके पैर नहीं थे और वो रो रहा था
    ये सब बस एक धोखा है

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    Anupam Sharma

    सितंबर 16, 2024 AT 00:35

    सच बताऊं तो मुझे लगता है कि ये सब बहुत ज्यादा बड़ा बना दिया गया है
    ये लोग बस एक खेल खेल रहे हैं, और हम इन्हें देवता बना रहे हैं
    क्या आपने कभी सोचा कि अगर ये लोग बिना इन टेक्नोलॉजी के खेलते तो क्या होता?
    मैंने एक बार एक आदमी को देखा था जिसने बिना पैर के दौड़ने की कोशिश की थी
    वो बस जमीन पर पड़ गया
    ये जो रिकॉर्ड हैं वो तो बस इलेक्ट्रॉनिक्स का नतीजा है
    लेकिन फिर भी... अगर ये लोग खुश हैं तो चलो देखते हैं
    क्योंकि शायद खुश रहना ही असली जीत है
    और हाँ, मैंने टीवी पर देखा था और वो वाकई अच्छा लगा
    बस इतना ही

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    Kunal Sharma

    सितंबर 16, 2024 AT 18:06

    देखो ये जो उजरा फ्रेंच है वो बस एक एथलीट नहीं, ये एक भावनात्मक रिवॉल्यूशन है
    एक ऐसा व्यक्ति जिसने अपने शरीर के अभाव को एक अद्भुत शक्ति में बदल दिया है
    ये नहीं कि वो ऊंचा कूद रहा है, बल्कि वो एक समाज के डर को ऊंचा कूद रहा है
    हम सब जानते हैं कि एक अंगहीन व्यक्ति को कैसे देखा जाता है
    लेकिन जब वो 1.94 मीटर की ऊंचाई पर उड़ रहा है, तो कौन अब उसे अंगहीन कहेगा?
    वो तो अब एक उड़ने वाला देवता है
    और शारद कुमार? वो भारत के दिल की धड़कन है
    जो बिना किसी बड़े बजट के, बिना किसी लक्ज़री के, बस अपने इरादे से दुनिया को चौंका रहा है
    ये खेल नहीं, ये जीवन का एक बड़ा सवाल है
    क्या हम अपनी सीमाओं को तोड़ सकते हैं? या हम अपने डर को अपनी जीत बना लेंगे?
    ये खिलाड़ी हमें याद दिला रहे हैं कि असली शक्ति शरीर में नहीं, आत्मा में होती है

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    himanshu shaw

    सितंबर 17, 2024 AT 12:17

    ये सब बहुत अच्छा लग रहा है, लेकिन क्या आपने कभी सोचा कि ये सब एक बड़ी बुनियादी धोखेबाजी है?
    क्या आप जानते हैं कि ये प्रोस्थेटिक्स किस देश में बन रहे हैं?
    क्या आप जानते हैं कि इनके निर्माता कौन हैं?
    क्या आप जानते हैं कि इन खिलाड़ियों को उनके देश ने कितना दिया?
    ये सब एक बड़ा विज्ञापन है
    एक बड़ा विज्ञापन जिसमें लोगों को भावनाओं से बांधा जा रहा है
    और फिर जब खेल खत्म हो जाएगा, तो ये लोग फिर से अपनी जिंदगी में वापस चले जाएंगे
    और कोई उनके लिए नहीं रहेगा
    ये सब बस एक नाटक है

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    Payal Singh

    सितंबर 19, 2024 AT 06:03

    मैं आज रात एक छोटे बच्चे के साथ बैठी थी, जिसका पैर नहीं था, और उसने मुझसे पूछा - अम्मा, क्या मैं भी एक दिन इतना ऊंचा कूद सकता हूँ?
    मैंने उसे गले लगा लिया और कहा - हाँ, बेटा, तुम नहीं कूदोगे, तुम उड़ोगे
    ये खिलाड़ी बस खेल नहीं खेल रहे, वो हर उस बच्चे के लिए एक आशा बन रहे हैं
    हमें उनकी जीत को सिर्फ पदक नहीं, बल्कि एक नई दुनिया की शुरुआत के रूप में देखना चाहिए
    और हाँ, भारत के लिए शारद कुमार का सिल्वर बहुत बड़ी बात है
    क्योंकि ये उस बच्चे की आँखों में चमक है
    और वो चमक दुनिया को बदल देगी

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