RJD को सबसे ज्यादा वोट मिले, पर सिर्फ 25 सीटें; NDA ने 202 सीटें जीतीं

RJD को सबसे ज्यादा वोट मिले, पर सिर्फ 25 सीटें; NDA ने 202 सीटें जीतीं

बिहार की विधानसभा चुनाव परिणाम 15 नवंबर, 2025 को घोषित हुए, और एक अजीब विरोधाभास सामने आया: Rashtriya Janata Dal ने सबसे ज्यादा वोट पाए, लेकिन सिर्फ 25 सीटें जीतीं। वहीं, National Democratic Alliance (NDA) ने 243 सीटों में से 202 सीटें हासिल कर धमाकेदार जीत दर्ज की। ये नतीजे राजधानी पटना से रात 9 बजे (UTC) चुनाव आयोग ने घोषित किए।

वोट शेयर और सीटों का अजीब अंतर

RJD ने 1.15 करोड़ वोट (23%) प्राप्त किए — ये उसका सबसे अच्छा प्रदर्शन था 2020 के 19.46% की तुलना में। लेकिन इन वोटों का असर सीटों में नहीं बन पाया। वहीं, Bharatiya Janata Party ने 1 करोड़ 8 लाख 11 हज़ार वोट (19.7%) पाए, और 89 सीटें जीतीं। Janata Dal (United) (JD(U)) ने 19.25% वोट और 85 सीटें हासिल कीं। ये वोट वितरण का अंतर एक ऐसा जाल है जिसमें RJD के वोट बिखरे रहे — कई विधानसभा क्षेत्रों में वे दूसरे या तीसरे स्थान पर रहे, लेकिन जीत की सीमा पार नहीं कर पाए।

NDA की रणनीति: बूथ स्तर पर नियंत्रण

एनडीए की जीत का राज़ बूथ स्तर की सूक्ष्म व्यवस्था में छिपा है। Navbharat Times के विश्लेषण के अनुसार, एनडीए ने पहले अपने अंदर के विद्रोहियों को संतुलित किया, फिर वोटर मोबाइलाइजेशन पर ध्यान दिया। जैसे कि Deegha में BJP के Sanjeev Chaurasia ने CPI(ML) की Divya Gautam को 59,079 वोटों से हराया। वहीं, Tarapur में BJP के Samrat Chaudhary ने RJD के Arun Sah को 45,639 वोटों से शिकस्त दी।

RJD का आंतरिक संकट: यादव फोर्ट ढहा

RJD ने 143 उम्मीदवारों में से 51 को यादव समुदाय के लिए आवंटित किया — ये उसकी सबसे बड़ी रणनीति थी। लेकिन Tejashwi Yadav ने अपने ही गढ़ Raghopur में हार खाई। वहां गिनती के 20वें दौर तक वे आगे थे, लेकिन अंतिम परिणाम में हार गए। NDTV ने कहा कि ‘यादव फोर्ट’ ढह गया। यह एक ऐसा संकेत है कि पारंपरिक जाति-आधारित समर्थन अब इतना मजबूत नहीं रहा।

महागठबंधन का टूटना: कांग्रेस भी बेबस

RJD के साथ गठबंधन में शामिल Congress ने 61 में से सिर्फ 6 सीटें जीतीं। CPI(ML) ने 2, CPI(M) ने 1, और CPI ने कोई भी सीट नहीं जीती। ये सब एक साथ मिलकर महागठबंधन के लिए एक भारी बोझ बन गए। वोटर्स को लगा कि यह गठबंधन एकजुट नहीं है — जिसकी वजह से वे NDA की ओर रुख कर गए।

प्रतिक्रिया: लालू और तेजश्वी का संदेश

पराजय के बाद, Lalu Prasad Yadav और Tejashwi Yadav ने एक संयुक्त बयान जारी किया: “Rashtriya Janata Dal गरीबों का दल है। यह गरीबों की आवाज़ उठाता रहेगा।” तेजश्वी ने कहा, “मेरा मानना है कि बिहार के लोग, हमारे नागरिक, ने अपनी बात कह दी। क्या हम कहें कि बिहार को नौकरियां नहीं चाहिए? क्या बिहार के युवाओं को रोजगार नहीं चाहिए?” ये बयान सिर्फ अपने आप में नहीं, बल्कि एक भविष्य की रणनीति की ओर इशारा है — अब वोटर्स के बीच गरीबी और बेरोजगारी को लेकर अपनी पहचान बनाने की जरूरत है।

क्यों ये चुनाव इतना महत्वपूर्ण है?

ये चुनाव बिहार के राजनीतिक नक्शे को बदल रहा है। RJD ने 2010 में 22 सीटें जीती थीं — ये 2025 का परिणाम उससे भी बदतर है। लेकिन वोट शेयर में वृद्धि से एक संकेत मिलता है: गरीब, युवा, और मुस्लिम मतदाताओं का समर्थन अभी भी RJD के पास है। समस्या वोट का संगठित उपयोग न हो पाना है। एनडीए ने अपने वोट को जीतने वाले क्षेत्रों में केंद्रित किया — यही अंतर था।

अगला कदम: RJD का रास्ता क्या होगा?

अब RJD के पास दो रास्ते हैं — या तो अपने आधार को और गहरा करना, या फिर गठबंधन की रणनीति में बदलाव करना। लालू और तेजश्वी अब नए नेताओं को उभारने की ओर रुख कर सकते हैं। यादव समुदाय के बाहर के नेताओं को अधिक जिम्मेदारी देना जरूरी होगा। वहीं, मुस्लिम वोटर्स के बीच भी एक नई रणनीति की जरूरत है — क्योंकि अब वे अपने वोट को अलग-अलग दलों में बांट रहे हैं।

क्या नीतिश कुमार अब चौथी बार मुख्यमंत्री बनेंगे?

हां। Nitish Kumar अब अपने चौथे कार्यकाल के लिए तैयार हैं। उनकी JD(U) ने 85 सीटें जीतीं, और BJP के साथ गठबंधन अभी भी मजबूत है। लेकिन अब उनकी चुनौती यह होगी कि वे कैसे अपने विरोधियों के वोटर्स को अपनी ओर खींचें — जिन्होंने अब वोट देकर दिखा दिया कि वे बस नेताओं के नाम पर नहीं, बल्कि नीतियों पर भरोसा करते हैं।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

RJD को इतने ज्यादा वोट मिले, फिर भी सिर्फ 25 सीटें क्यों आईं?

RJD के वोट बिखरे हुए थे — उन्होंने 143 सीटों में भाग लिया, लेकिन ज्यादातर में दूसरे या तीसरे स्थान पर रहे। जबकि NDA के वोट उन सीटों पर केंद्रित थे जहां जीत की संभावना थी। इसलिए 1.15 करोड़ वोट के बावजूद सिर्फ 25 सीटें मिलीं।

Tejashwi Yadav ने अपना निर्वाचन क्षेत्र खो दिया, क्या इसका कोई राजनीतिक असर होगा?

हां। Raghopur की हार सिर्फ एक नुकसान नहीं, बल्कि एक संकेत है कि यादव परिवार का पारंपरिक वोट बेस कमजोर हो रहा है। यह उनके नेतृत्व के लिए एक चेतावनी है। अब उन्हें नए नेताओं को उभारना होगा, न कि सिर्फ परिवार के नाम पर निर्भर रहना।

Congress की बुरी तरह से असफलता का क्या कारण है?

Congress ने बिहार में अपनी पहचान खो दी है। वे अब भी नेशनल लीडर्स के नाम पर चुनाव लड़ रहे हैं, लेकिन बिहार के लोग अब स्थानीय नेताओं और स्थानीय मुद्दों को प्राथमिकता देते हैं। उनकी 61 सीटों में से सिर्फ 6 जीतना एक गहरी विफलता है।

RJD के लिए अगले चुनाव की रणनीति क्या हो सकती है?

RJD को अपने वोटर्स के बीच वोट को संगठित करना होगा — ज्यादा सीटों में भाग लेने की बजाय, कम सीटों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। उन्हें यादव और मुस्लिम समुदायों के बाहर भी नेताओं को जगह देनी होगी। नौकरी और गरीबी पर अपनी बात दोहरानी होगी।

NDA की जीत के बाद बिहार में क्या बदलाव आएगा?

NDA अब बिहार में एक असली अधिकार के साथ शुरू हो रहा है। नीतिश कुमार और BJP के बीच साझेदारी अब और मजबूत होगी। लेकिन बिहार के युवाओं को रोजगार देना, बेरोजगारी कम करना और शिक्षा में सुधार करना अब उनकी सबसे बड़ी चुनौती बन गई है।

क्या ये चुनाव भारत के अन्य राज्यों के लिए एक नमूना है?

हां। बिहार का मामला दिखाता है कि वोट शेयर और सीटों का अंतर कैसे राजनीति को बदल सकता है। अगर कोई दल अपने वोट को संगठित नहीं करता, तो वह चुनाव हार सकता है — भले ही वोटों की संख्या अधिक हो। ये अगले चुनावों के लिए एक अहम सबक है।

13 टिप्पणि

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    Krishna A

    नवंबर 17, 2025 AT 00:46

    ये सब बकवास है, RJD वोट तो ज्यादा पा रहा है, फिर भी हार गया? ये चुनाव तो ठगी है।

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    Jaya Savannah

    नवंबर 18, 2025 AT 13:16

    मतदाता तो समझदार हैं... NDA ने बस बूथ पर काम किया, RJD ने फेसबुक पर वीडियो बनाए 😅

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    Hemanth Kumar

    नवंबर 18, 2025 AT 18:19

    चुनावी प्रणाली के संदर्भ में, वोट शेयर और सीट वितरण के बीच असंगति एक गणितीय अनिवार्यता है, जो प्रतिनिधित्व के बहुमत तंत्र द्वारा उत्पन्न होती है। RJD के वोट अत्यधिक विस्तृत थे, जिसके कारण उनकी विजय की संभावना न्यूनतम रही।

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    kunal duggal

    नवंबर 19, 2025 AT 21:15

    मैक्रो-वोटिंग डायनामिक्स में, एनडीए के लिए बूथ-लेवल ऑप्टिमाइजेशन एक स्ट्रैटेजिक एडवांटेज था। राजनीतिक इकोसिस्टम में, एक फेडरेटेड रणनीति ने वोटर मोबिलाइजेशन को सिस्टमैटिक रूप से कार्यान्वित किया, जिससे एक डिस्ट्रिब्यूशनल इनइक्विटी का निर्माण हुआ।

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    रमेश कुमार सिंह

    नवंबर 20, 2025 AT 19:47

    ये चुनाव तो जैसे एक बारिश हुई, जिसमें RJD के वोट बादलों में बिखर गए, और NDA के वोट नदियों में बह गए - जिन्होंने खेतों को हरा-भरा कर दिया। यादव फोर्ट ढहा, लेकिन गरीबी की आवाज़ अभी भी गूंज रही है। क्या हम इसे सिर्फ एक हार मानेंगे, या इसे एक नए जागरण का आरंभ मानेंगे?

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    Sandhya Agrawal

    नवंबर 21, 2025 AT 15:43

    क्या आपने कभी सोचा है कि ये सब किसी बड़े फैक्टर के खिलाफ है? NDA के पास डेटा कंपनियां हैं, और वोटर्स को ट्रैक किया जा रहा है। ये चुनाव नहीं, एक ऑपरेशन है।

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    Vikas Yadav

    नवंबर 22, 2025 AT 01:58

    मुझे लगता है, कि RJD को अपनी रणनीति पर गहराई से विचार करना चाहिए। और नीतिश कुमार को भी, कि वे वास्तव में किसके लिए सरकार बना रहे हैं।

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    Amar Yasser

    नवंबर 23, 2025 AT 21:37

    ये बिहार की बात है, लेकिन देश के हर राज्य में ऐसा हो रहा है। वोटर्स अब नेताओं के नाम पर नहीं, बल्कि उनके काम पर भरोसा कर रहे हैं। अच्छी बात है, भाई।

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    Steven Gill

    नवंबर 25, 2025 AT 07:15

    मैंने देखा कि रागहोपुर में तेजश्वी लगभग जीत गए थे... लेकिन अंत में नहीं। ये दर्दनाक है। लेकिन शायद ये एक नई शुरुआत का संकेत है - जहां लोग अब नाम से नहीं, बल्कि नीतियों से जुड़ रहे हैं।

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    Saurabh Shrivastav

    नवंबर 26, 2025 AT 00:15

    हां, RJD ने वोट जीते - लेकिन फिर भी हार गए। ये तो बिहार का बाजार है, जहां वोट बेचे जाते हैं, और जिसके पास ज्यादा बाजार बनाने की शक्ति होगी, वो जीतेगा। लालू ने तो अब गरीबों की आवाज़ उठाने की बात कही - अब बताओ, गरीबों के लिए बस वोट नहीं, रोटी भी चाहिए।

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    Prince Chukwu

    नवंबर 26, 2025 AT 18:23

    भाई, ये चुनाव तो जैसे एक बड़ा बाजार था - RJD ने बहुत सारे बर्तन बनाए, लेकिन कोई उन्हें खरीद नहीं पाया। NDA ने बस एक बर्तन बनाया, लेकिन उसे हर घर तक पहुंचा दिया। अब बिहार के घरों में वही बर्तन चल रहा है - जो भरा हुआ है।

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    Divya Johari

    नवंबर 28, 2025 AT 09:12

    प्रजातंत्र के संदर्भ में, वोटिंग व्यवस्था की अपरिहार्य विशेषताएँ राजनीतिक विविधता को अस्वीकार करती हैं। इसलिए, RJD की हार एक संरचनात्मक नियति है, न कि एक विफलता।

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    Ankush Gawale

    नवंबर 29, 2025 AT 15:30

    हम सब अपने-अपने दल के लिए लड़ रहे हैं, लेकिन क्या हम भूल गए कि बिहार के लोगों की जरूरतें अलग हैं? शायद हमें एक-दूसरे के साथ बात करनी चाहिए, न कि आपस में लड़ना।

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