मराठी अभिनेता विजय कदम का निधन: सिनेमा और रंगमंच को दी अमूल्य योगदान
वयोवृद्ध मराठी अभिनेता विजय कदम का निधन
मराठी फिल्म और थिएटर की जगत ने एक अद्वितीय सितारा खो दिया है। शनिवार सुबह मुंबई में अपने घर पर 68 वर्षीय अभिनेता विजय कदम का निधन हो गया। विजय कदम का तप और संघर्ष कैंसर से था, और अभिनेता जयवंत वाडकर ने इस दुखद समाचार की पुष्टि की। वाडकर ने कहा कि विजय कदम ने बड़े साहस के साथ कैंसर का सामना किया, लेकिन उनकी स्वास्थ्य स्थिति में अंततः गिरावट आई।
विजय कदम को लगभग 25 दिन पहले एसिडिटी का अटैक हुआ था, जिसके बाद उनकी स्थिति और बिगड़ गई। कदम के निधन से मराठी फिल्म जगत और थिएटर में एक बड़ा खालीपन आ गया है। विजय कदम एक बहुमुखी और प्रतिभावान कलाकार थे, जिन्होंने मराठी सिनेमा से लेकर हिंदी फिल्मों तक अपने अभिनय का जलवा बिखेरा।
बेहतरीन अभिनय और यादगार किरदार
विजय कदम की अभिनीत विविधता और उनकी अद्वितीय शैली ने उन्हें अभिनय जगत में एक विशेष स्थान दिलाया। उनका थिएटर और फिल्मों में योगदान अपार रहा है। कदम ने बीते दशकों में कई मशहूर नाटकों में अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन किया, जिनमें 'टूरटूर', 'विच्चा माझी पुरी करा' और 'पप्पा सांगा कुणाचे' शामिल हैं। 1980 और 1990 के दशकों में उनके स्टेज परफार्मेंसेस ने उन्हें बड़ी पहचान दिलाई।
उनकी फिल्मों की सूची
विजय कदम की फिल्मोग्राफी में कई प्रमुख मराठी फिल्में शामिल हैं, जैसे 'चश्मे बहाद्दर', 'पुलिस लाइन', और 'हलद रुशली कुंकू हासला'। उन्होंने इन फिल्मों में अपने अभिनय से दर्शकों का दिल जीत लिया। उनकी प्रतिभा ने उन्हें मराठी सिनेमा के सबसे लोकप्रिय और सम्मानित अभिनेताओं में शुमार किया।
अभिनेता का अंतिम संस्कार
शनिवार दोपहर को अंधेरी-ओशिवारा श्मशान गृह में विजय कदम का अंतिम संस्कार संपन्न हुआ। उनकी अंतिम यात्रा में उनके परिवार, करीबी मित्र और फिल्म तथा थिएटर जगत के कई जाने-माने चेहरों ने शिरकत की। सभी ने विजय कदम के योगदान को याद करते हुए श्रद्धांजलि अर्पित की।
विजय कदम की विरासत
विजय कदम की अद्वितीय प्रतिभा और उनकी कला के प्रति समर्पण ने उन्हें फिल्म और थिएटर जगत में अमिट स्थान दिया है। उनकी विरासत को याद किया जाएगा और उनकी अदाकारी भविष्य की पीढ़ियों को प्रेरणा देती रहेगी।
मराठी सिनेमा और थिएटर के प्रशंसक अगले अनेकों बरसों तक विजय कदम के कार्यों की सराहना करते रहेंगे। उनका अद्वितीय योगदान हमेशा ही उन्हें एक विशेष स्थान दिलाए रहेगा।
Akshat goyal
अगस्त 11, 2024 AT 22:32विजय कदम ने जो अभिनय किया, वो कोई नाटक नहीं, जीवन था।
Diksha Sharma
अगस्त 12, 2024 AT 18:42ये सब बहुत अच्छा लगा पर क्या आप जानते हैं कि इसके पीछे कोई फार्मास्यूटिकल कंपनी थी जिसने उनकी दवा में जहर मिलाया? मैंने एक डॉक्यूमेंट्री देखा था जिसमें बताया गया था कि कैंसर का इलाज बेचने वाले ही लोग इसे बढ़ाते हैं।
विजय कदम की मौत एक अंतरराष्ट्रीय साजिश है। वो बहुत ज्यादा प्रसिद्ध हो गए थे।
Amrit Moghariya
अगस्त 14, 2024 AT 01:14यार इस आदमी ने तो बस एक बार टूरटूर में अभिनय किया था और फिर से देखने को मिला नहीं। अब बहुत सारे लोग उनके नाम के साथ एक डॉक्यूमेंट्री बना रहे हैं।
लेकिन अगर आप उनके नाटक देखते हैं तो पता चलता है कि वो वाकई में बहुत अच्छे थे।
ashi kapoor
अगस्त 14, 2024 AT 01:14मैंने उनका नाटक 'पप्पा सांगा कुणाचे' देखा था और मैं रो पड़ी। उनकी आवाज़ में एक ऐसा दर्द था जो आज के एक्टर्स के पास नहीं है।
अब तो हर कोई फिल्म में डांस करता है, बातें करता है, बाहरी लुक बनाता है, लेकिन अभिनय तो वो था जिसमें आंखों में दर्द दिखे।
मैंने उनके एक इंटरव्यू में सुना था कि वो रोज़ सुबह 5 बजे उठकर बोलने की अभ्यास करते थे। अब तो लोग एक दिन में एक फिल्म कर लेते हैं।
मैं बस यही कहूंगी कि उनकी विरासत को याद रखो, न कि बस एक न्यूज़ आर्टिकल के रूप में भूल जाओ। 💔
Gajanan Prabhutendolkar
अगस्त 14, 2024 AT 17:29ये सब बहुत सुंदर है लेकिन आपने कभी उनके विरोधियों के बारे में सोचा है? मराठी थिएटर के असली नायक तो वो थे जिन्हें कभी कैमरा नहीं दिखा।
विजय कदम को तो सिर्फ इसलिए याद किया जा रहा है क्योंकि वो शहर में रहते थे। गांवों के लोग जिन्होंने 40 साल तक नाटक किए, उनके बारे में कोई नहीं लिखता।
और अगर आप वाकई उनकी विरासत जानना चाहते हैं, तो उनके नाटकों के लिए एक डिजिटल आर्काइव बनाएं। न कि बस इतना लिख दें कि 'विरासत याद रखी जाएगी'।
shubham gupta
अगस्त 16, 2024 AT 06:42मैंने उनका 'पुलिस लाइन' देखा था। उनकी आवाज़ का अंदाज़ और शरीर की भाषा देखकर लगता था कि वो वाकई एक पुलिस अधिकारी हैं।
उनके अभिनय में बहुत कम अतिरिक्त भावनाएं थीं, लेकिन वो जो थीं, वो बहुत सच्ची थीं।
इस तरह के अभिनेता आज बहुत कम हैं।
sneha arora
अगस्त 16, 2024 AT 20:46मैंने उन्हें एक नाटक में देखा था जब मैं बच्ची थी... उनकी आंखों में ऐसा दर्द था कि मैं रो पड़ी 😭
अब तो लोग बस नई फिल्में देखते हैं, पर वो लोग जिन्होंने हमें अभिनय की दुनिया में लाया, उन्हें भूल गए।
उनके लिए एक छोटा सा स्मारक बना दें, बस एक बोर्ड लगा दो जहां उनका नाम लिखा हो।
Mansi Arora
अगस्त 18, 2024 AT 20:25विजय कदम का नाम तो बहुत बड़ा है लेकिन उनके नाटकों को देखने वाले कितने हैं? ज्यादातर लोग तो उन्हें टीवी पर देखते थे जहां उनकी आवाज़ अच्छी नहीं आती थी।
मैंने उनका एक इंटरव्यू सुना था जहां उन्होंने कहा था कि उन्हें लगता है कि थिएटर अब बस एक फैशन है।
उनकी बात सही थी।
Amit Mitra
अगस्त 20, 2024 AT 08:51मैंने उनके नाटक 'विच्चा माझी पुरी करा' को एक स्कूल प्रोजेक्ट के लिए पढ़ा था। तब मैं बच्चा था, लेकिन उस नाटक ने मुझे अभिनय के बारे में सोचने पर मजबूर कर दिया।
वो एक ऐसे अभिनेता थे जिन्होंने बिना बोले भी बहुत कुछ कह दिया।
उनके अभिनय में एक ऐसी शांति थी जो आज के अभिनय में नहीं मिलती।
swetha priyadarshni
अगस्त 20, 2024 AT 18:54विजय कदम के अभिनय की विशेषता ये थी कि वो हर किरदार को अपने अंदर बसा लेते थे। वो बस अभिनय नहीं करते थे, वो बन जाते थे।
उन्होंने न सिर्फ मराठी सिनेमा को बदला, बल्कि उसकी अवधारणा को भी बदल दिया।
उनके नाटकों में वास्तविक जीवन की धुन थी - बिना किसी ज़बरदस्ती के, बिना किसी ड्रामा के।
उनकी आवाज़ की गहराई, उनकी चुप्पी का भार, उनकी आंखों में छिपी अनकही कहानियाँ - ये सब आज के अभिनेताओं के लिए एक मिसाल है।
उनके बाद कोई भी अभिनेता उनकी गहराई नहीं दे पाया।
अब तो लोग बस नाम लेते हैं, लेकिन उनके अभिनय को समझने वाले कम हैं।
उनकी विरासत को बचाने के लिए उनके सभी नाटकों को डिजिटल फॉर्मेट में संरक्षित किया जाना चाहिए।
हमें बस याद नहीं रखना है, हमें उनकी कला को जीवित रखना है।
उनके बारे में बहुत सारी फिल्में बन चुकी हैं, लेकिन उनके जीवन की एक डॉक्यूमेंट्री नहीं बनी।
ये एक बड़ी लापरवाही है।
anand verma
अगस्त 22, 2024 AT 01:08विजय कदम के निधन से न केवल मराठी सांस्कृतिक जगत बल्कि भारतीय नाटकीय परंपरा का एक महत्वपूर्ण अंश खो गया है।
उनके अभिनय की शुद्धता, उनके नाटकों की गहराई, और उनके जीवन में कला के प्रति समर्पण को आज की पीढ़ी को उदाहरण के रूप में अपनाना चाहिए।
उनकी विरासत को संरक्षित करने के लिए शिक्षा संस्थानों में उनके नाटकों को अनिवार्य पाठ्यक्रम में शामिल किया जाना चाहिए।
उनके नाम पर एक अखिल भारतीय थिएटर पुरस्कार की स्थापना करना भी एक उचित सम्मान होगा।
Thomas Mathew
अगस्त 23, 2024 AT 14:32जिन लोगों ने विजय कदम को याद किया, उन्होंने क्या सोचा था? कि वो एक अभिनेता थे? नहीं।
वो एक विचारक थे। उनके हर शब्द में एक दर्शन छिपा था।
उन्होंने जो किया, वो कला नहीं, जीवन का एक रहस्य था।
हम सब बस उनके नाम को बोल रहे हैं, लेकिन उनकी आत्मा को नहीं छू पाए।
उनकी मौत ने हमें एक सवाल पूछा - क्या हम भी इतने सच्चे हो सकते हैं?
Yash Tiwari
अगस्त 24, 2024 AT 16:58विजय कदम के अभिनय में एक ऐसी शक्ति थी जो आज के अभिनेताओं में पूरी तरह से गायब हो चुकी है।
वे किसी भी भूमिका को नहीं, बल्कि एक जीवन के रूप में जीते थे।
उनकी आवाज़ में एक गहराई थी जो किसी अन्य अभिनेता के पास नहीं थी - वह आवाज़ न केवल शब्दों को व्यक्त करती थी, बल्कि उनके अंदर के दर्द, उम्मीदों और अस्तित्व को भी।
उनके नाटकों में वास्तविकता का एक ऐसा चित्रण था जो आज के अतिरिक्त दृश्यों और बोलचाल के ज़रिए बनाए जाने वाले नाटकों से बिल्कुल अलग था।
उन्होंने कभी अपने अभिनय को लोकप्रिय बनाने के लिए नहीं, बल्कि सच्चाई को व्यक्त करने के लिए किया।
उनके निधन के बाद भी हमारे पास उनके जैसे अभिनेता नहीं हैं।
यह एक अपरिहार्य नुकसान है - एक ऐसा नुकसान जिसकी भरपाई किसी भी पुरस्कार या यादगार से नहीं हो सकती।
उनके अभिनय की विरासत को बचाने के लिए उनके नाटकों का एक विश्वविद्यालय स्तरीय अध्ययन किया जाना चाहिए।
हमारे लिए यह एक अवसर है - न कि एक शोक का अवसर, बल्कि एक जागृति का।
Siddharth Madan
अगस्त 26, 2024 AT 11:20उनकी आवाज़ याद है।
बस यही काफी है।
Nathan Roberson
अगस्त 26, 2024 AT 12:32मैंने उन्हें एक गांव के नाटक में देखा था - बिना लाइट्स के, बिना बैकग्राउंड म्यूजिक के।
उन्होंने बस खड़े होकर एक बात कही - और पूरा गांव चुप हो गया।
वो अभिनय नहीं, जादू था।
Sagar Solanki
अगस्त 27, 2024 AT 16:47विजय कदम की मौत एक नियंत्रित घटना है - जिसे फिल्म उद्योग ने अपने लाभ के लिए बनाया है।
उन्हें एक 'लीजेंड' बनाकर उनकी विरासत को उपभोग्य बना दिया गया।
उनके नाटकों को अब बाजार में बेचा जा रहा है, और उनके नाम का इस्तेमाल फिल्मों के प्रचार में किया जा रहा है।
क्या आप जानते हैं कि उनके नाटकों के अधिकार किसके पास हैं? एक बड़ी मीडिया कंपनी के।
ये सब एक धोखा है।
Gajanan Prabhutendolkar
अगस्त 27, 2024 AT 18:55मैंने विजय कदम के एक नाटक का ऑडियो रिकॉर्डिंग सुना था - उनकी आवाज़ में एक ऐसा दर्द था जो आज के डिजिटल एडिटिंग से नहीं बनाया जा सकता।
उन्होंने जो किया, वो कला नहीं, एक चिकित्सा था।
उनकी आंखों में छिपा दर्द आज के एक्टर्स के लिए एक दर्पण है।
अगर हम उनकी विरासत को समझना चाहते हैं, तो हमें उनके अभिनय को नहीं, उनकी चुप्पी को समझना होगा।